Monday, July 26, 2010

नर बलि

मैं अपने बेटे को स्कूल छोड़ने जा रहा था की रास्ते में देखा एक स्कूटर हाल में ही खुदी हुई सीवर लाइन में गिरा हुआ था, न जाने क्या हुआ होगा उस स्कूटर वाले का, भगवान ही मालिक है !!! दरअसल हमारे शहर देहरादून में आजकल जोरशोर से सीवर का काम चल रहा है। अचानक ही स्मरण हुआ की पाषाण काल में जब भी कोई काम शुरू करते थे या चलता हुआ काम रुक जाया करता थे तो सभी लोग भगवान को प्रसन्न करने के लिए बलि दिया करते थे ताकि सभी कार्य निर्विघ्न रूप से चलते रहें। भारत देश के सरकारी विभाग आज भी उसी मान्यता पर चल रहें हैं। दिल्ली मेट्रो से लेकर हमारे छोटे से शहर की सीवर लाइन तक ना जाने कितने व्यक्ति सुरक्षा नियमों की अनदेखी की बलि चढ़ चुके हैं। हमारे महान देश में इंसानी जीवन का मोल शायद उतना नहीं आँका जाता जितना की पश्चिमी देशों में। सोहराबुद्दीन हत्याकांड में केंद्र सरकार ने पूरे गुजरात की तंत्र व्यवस्था को हिला कर रख दिया है पर वो हजारों व्यक्ति जो किसी सरकारी विभाग या कर्मचारी की भूल या अनदेखी की वजह से अपनी बलि दे चुके हैं , ना तो उनकी मौत पर कोई रोने वाला है न ही उन कर्मचारियों के विरुद्ध कोई एक्शन लिया जाता है। भारत निर्माण के नाम पर हो रहे भाँति भाँति के निर्माण तभी सार्थक हो सकते है, जब के एक छोटा सा यन्त्र याद रखा जाए की जिस जनता के लिए ये निर्माण हो रहे हैं वो इनका सुख भोगने के लिए जीवित तो रहे।

Saturday, July 24, 2010

मेरे देश की धरती

मनोज कुमार की पिक्चर का गाना कानों में सुनाई दे रहा है, मेरे देश की धरती सोना उगले , उगले हीरे मोती। हमें दिखाई दे रहा है खुले मैदानों में सड़ता हुआ गेहूं और अनाज। टी. वी. पर आई. पी. एल. का घोटाला भी देखा जहाँ कहते हैं की मोदी ने लाखों करोड़ों का घोटाला कर डाला। हमारे कृषि मंत्री जी ध्यान तो कीजिये क्रिकेट की दुनिया से जो घोटालों का पर्दा फाश कर रहें हैं, उससे कहीं ज्यादा मूल्यवान अनाज तो आप की क्रिकेट व्यस्तता ने देश के भूखे गरीबों के मुहं से ने छीन लिया।

Friday, July 23, 2010

मिस्ड कॉल

भैया अपनी लाइफ भी कुछ ऐसे ही है। कभी कनेक्शन पूरा लगा ही नहीं। एक राह पे चले तो दूसरी ज्यादा सुहावनी लगने लगी। तो फिर क्या था, कदम हमेशा वापिस ही मुड़े हमारे और दूसरी राह पे चल दिए। दो कदम अभी चले ही थे कि लगने लगा शायद, पहले वाला रास्ता ही ठीक था, कुछ देर चले तो होते उस पर। हमेशा एक अच्छी और मुकम्मल मंजिल कि तलाश में किसी राह पे पूरा चले ही नहीं। कभी किसी एक राह पे चलकर उसे पूरा और परफेक्ट बनाने कि कोशिश ही नहीं की। हमें तो चाहिए था एक रेडीमेड सोलुशन और वो भी बिलकुल परफेक्ट। तो यूं कहें कि मोबाइल फ़ोन कि भाषा में हमने कोई भी कॉल मिला कर कनेक्ट होने से पहले ही काट दी और अपनी पूरी लाइफ बन कर रह गयी है एक मिस्ड कॉल।